Sep 13, 2010

छलके क्यों है आखों से ये आसू  जब मिटा है आज ये गम
रुके क्यों है ये कदम जब नज़र आने लगी है मजिल
पलट के क्यों देखती है ज़िन्दगी जब अगले मोड़ पे है खुशियाँ

क्यों थामे है ये मन वो कच्चे धागे
जो सिर्फ कसक दे जाते है दिल को
क्यों दुखता है ये मन उन यादो को छोड़ते हुए
जब उन यादो ने किये सिर्फ आख़े नाम

May 13, 2010

ख़ामोशी की खवाइश है
तू ही इस दिल की फ़रमाइश है
थोडा रुकना थोडा चलना और हाथो में जो ये हाथ है

May 8, 2010

रुख जाना है कितना आसान पर ये नहीं है पूर्ण विराम

कुछ बातें अधूरी रह जाती है
कुछ यादें बार बार लौट आती है
मंज़िल्लो की जगह मोड़ और रास्तो की जगह ठहराव 
कोशिस और आशा दोनों एक पंथ के दो काज
ना जाने आशा ने पहेले छोड़ा साथ
या कोशिस ने मानी हार
सवालो की जगह जवाब और उनमें उलझे ना जाने कितने सवाल
रुख जाना होगा कितना आसान
पर
शायद इस कहानी की होगी बिलकुल अलग आवाज़
शायद जो यादे लोटी उनसे करनी होगी मुझे मुलाकात
शायद बस एक मोड़ और
शायद ना कोशिश ना आशा बस कर्म देगे साथ
शायद नहीं ढूढने मुझे सवालों के जवाब
सच रुख जाना है कितना आसान
पर
जिस कहानी के किरदारों ने दी है चोट हज़ार
वाही किसी ने दी है सहने की शक्ति तमाम
यादो को चुनने की
हेर मूड से गुजरने की
आशाओं के टूटने पे कोशिश करते रहने की
उठे सवालो के जवाब कर्म से देने की

पर ये नहीं है पूर्ण विराम
कहानी किरदार यादे
मोड़ मज़िले
सवाल
फिर गुज़रे गे |

Mar 22, 2010

कभी पहेले खुद को रोका ना था
तुमसे बातें करने को इतना सोचा ना था
गुज़रता तुमको जो देखा, तो दिल ने चाहा ना जाने क्या
 क्यों खिचती है अपनी ओर आखे तेरी
वो कुछ धुन्दले से स्पर्श का एहसास
अधि अधूरी बातो की वो खनकार
क्यों करना चाहू तुमपे ऐतबार