Feb 22, 2014

ज़िन्दगी मुस्कराती है 
जाने फिर क्यों आँख भर आती है। 
छोटा सा आचल, थोड़े से सपने,
जाने फिर क्यों राहें भटक जाती है। 

ज़िन्दगी कुछ समझाना चाहती है ,
जाने क्या सीखना चाहती है।