May 13, 2010

ख़ामोशी की खवाइश है
तू ही इस दिल की फ़रमाइश है
थोडा रुकना थोडा चलना और हाथो में जो ये हाथ है

May 8, 2010

रुख जाना है कितना आसान पर ये नहीं है पूर्ण विराम

कुछ बातें अधूरी रह जाती है
कुछ यादें बार बार लौट आती है
मंज़िल्लो की जगह मोड़ और रास्तो की जगह ठहराव 
कोशिस और आशा दोनों एक पंथ के दो काज
ना जाने आशा ने पहेले छोड़ा साथ
या कोशिस ने मानी हार
सवालो की जगह जवाब और उनमें उलझे ना जाने कितने सवाल
रुख जाना होगा कितना आसान
पर
शायद इस कहानी की होगी बिलकुल अलग आवाज़
शायद जो यादे लोटी उनसे करनी होगी मुझे मुलाकात
शायद बस एक मोड़ और
शायद ना कोशिश ना आशा बस कर्म देगे साथ
शायद नहीं ढूढने मुझे सवालों के जवाब
सच रुख जाना है कितना आसान
पर
जिस कहानी के किरदारों ने दी है चोट हज़ार
वाही किसी ने दी है सहने की शक्ति तमाम
यादो को चुनने की
हेर मूड से गुजरने की
आशाओं के टूटने पे कोशिश करते रहने की
उठे सवालो के जवाब कर्म से देने की

पर ये नहीं है पूर्ण विराम
कहानी किरदार यादे
मोड़ मज़िले
सवाल
फिर गुज़रे गे |

Mar 22, 2010

कभी पहेले खुद को रोका ना था
तुमसे बातें करने को इतना सोचा ना था
गुज़रता तुमको जो देखा, तो दिल ने चाहा ना जाने क्या
 क्यों खिचती है अपनी ओर आखे तेरी
वो कुछ धुन्दले से स्पर्श का एहसास
अधि अधूरी बातो की वो खनकार
क्यों करना चाहू तुमपे ऐतबार

Nov 3, 2009

और हम चाहते भी है...

कोशिश जरी है,
कदम अग्रसर है,
धुन्दती आखें नमी कुशी की है,
वक्त है जो ये ज्हकम भी भर देगा अगर हम चाहे तो,
और हम चाहते भी है.

This was inspired as a response to the comment in incomplete... :) thanks for the positivity

Oct 28, 2009

thought

कुछ एहसास शब्द में ढलने को, पर अटके है

Oct 23, 2009

Incomplete

इतनी भीड़ में भी है तनहाई
इतनी आवाज़ में भी है खोमाशी
कितनी रहे है पर मंजिल फ़िर भी नही
सब है उन्ही रहो के रही पर हमसफ़र नही
चहरे कितने पर आखों में वो अपनापन नही
दोस्त कितने है पर शुब्चिन्तक नही

Aug 10, 2009

How many did you know???

The legends we lost via NDTV