Oct 28, 2011

फिर वाही मोड़ वीर वाही तनहाई है
थोड़ी धुप थोड़ी पर्चिय है
रुक चाहे कदम पर

Apr 1, 2011

लगता है आशाएँ थकने सी लगी है
क्यों मिलती नहीं कोई उम्मीद मुझसे
पता नहीं मंजिले खोई है या रास्ता
या फिर लगनेलागी कमी किसी की
क्यों जो मिलते है साये सिर्फ थोड़ी देर को ही 
तलाश है तो किसकी 
जो बिखरे है उन्होंने तो सिर्फ तोडा है मुझको
जो उठती है आवाज़ वो सुनिय नहीं देती किसी को 
और जो आवाज़ सुनाई वो तो मेरी सिर्फ परछाई है
कोई इस वक्त है तो कोई हमेशा होके भी कभी नहीं
कोई सुनता नहीं तो कोई सुनाता नहीं 
कोई रुकता नहीं तो कोई बुलाता नहीं
अपनी पहचान  ढूढने निकली हु पर किसी की परछाई मैं 


Jan 22, 2011

रंग

लगता नहीं ये साल नया है
कुछ कम कुछ अधुरा है
क्यों दुखने पर ही होता कुछ नया है
 या फिर मासूमीयत के उतारते रंग से कुछ छिला है
 कितने बार उन रंगों को फिर निखारेगे
कभी तो उनपे भी निशान छोड़ जायेगे हादसे
पर शायद उन आधे उखड़े
यहाँ वहां बिखरे
कुछ कच्चे कुछ पक्के
रंगों से उभरे कोई खूबसूरत तस्वीर नयी

पर जब तक पूरी ना होगी ये तस्वीर
कैसे मान लू की ये रंग अपनी जगह खुबसूरत नहीं

Jan 3, 2011


Sep 13, 2010

छलके क्यों है आखों से ये आसू  जब मिटा है आज ये गम
रुके क्यों है ये कदम जब नज़र आने लगी है मजिल
पलट के क्यों देखती है ज़िन्दगी जब अगले मोड़ पे है खुशियाँ

क्यों थामे है ये मन वो कच्चे धागे
जो सिर्फ कसक दे जाते है दिल को
क्यों दुखता है ये मन उन यादो को छोड़ते हुए
जब उन यादो ने किये सिर्फ आख़े नाम

May 13, 2010

ख़ामोशी की खवाइश है
तू ही इस दिल की फ़रमाइश है
थोडा रुकना थोडा चलना और हाथो में जो ये हाथ है

May 8, 2010

रुख जाना है कितना आसान पर ये नहीं है पूर्ण विराम

कुछ बातें अधूरी रह जाती है
कुछ यादें बार बार लौट आती है
मंज़िल्लो की जगह मोड़ और रास्तो की जगह ठहराव 
कोशिस और आशा दोनों एक पंथ के दो काज
ना जाने आशा ने पहेले छोड़ा साथ
या कोशिस ने मानी हार
सवालो की जगह जवाब और उनमें उलझे ना जाने कितने सवाल
रुख जाना होगा कितना आसान
पर
शायद इस कहानी की होगी बिलकुल अलग आवाज़
शायद जो यादे लोटी उनसे करनी होगी मुझे मुलाकात
शायद बस एक मोड़ और
शायद ना कोशिश ना आशा बस कर्म देगे साथ
शायद नहीं ढूढने मुझे सवालों के जवाब
सच रुख जाना है कितना आसान
पर
जिस कहानी के किरदारों ने दी है चोट हज़ार
वाही किसी ने दी है सहने की शक्ति तमाम
यादो को चुनने की
हेर मूड से गुजरने की
आशाओं के टूटने पे कोशिश करते रहने की
उठे सवालो के जवाब कर्म से देने की

पर ये नहीं है पूर्ण विराम
कहानी किरदार यादे
मोड़ मज़िले
सवाल
फिर गुज़रे गे |

Mar 22, 2010

कभी पहेले खुद को रोका ना था
तुमसे बातें करने को इतना सोचा ना था
गुज़रता तुमको जो देखा, तो दिल ने चाहा ना जाने क्या
 क्यों खिचती है अपनी ओर आखे तेरी
वो कुछ धुन्दले से स्पर्श का एहसास
अधि अधूरी बातो की वो खनकार
क्यों करना चाहू तुमपे ऐतबार

Nov 3, 2009

और हम चाहते भी है...

कोशिश जरी है,
कदम अग्रसर है,
धुन्दती आखें नमी कुशी की है,
वक्त है जो ये ज्हकम भी भर देगा अगर हम चाहे तो,
और हम चाहते भी है.

This was inspired as a response to the comment in incomplete... :) thanks for the positivity

Oct 28, 2009


Oct 23, 2009

Incomplete

इतनी भीड़ में भी है तनहाई
इतनी आवाज़ में भी है खोमाशी
कितनी रहे है पर मंजिल फ़िर भी नही
सब है उन्ही रहो के रही पर हमसफ़र नही
चहरे कितने पर आखों में वो अपनापन नही
दोस्त कितने है पर शुब्चिन्तक नही

Aug 10, 2009


May 15, 2009


Apr 19, 2009

Pathetic journalism

Women’s groups protest newspaper report on rape case via Hindu

I am wondering what kind of sickness does the society have to to want to read the details of rape or identity of a rape victim. I am saying this cause mumbai mirror must have thought this to be masala article to sell its pages of so called newspaper. Would you want to read about some gory murder details... in newspaper. A newspaper is read by all age groups all strats of society... the definition of news is changing so fast that some how it does not remain news anymore. The so called news channel, the so called newspapers what do they have? What do they reflect? What do they say?

What happened to news being a peice of information be worthy of mentioning? What happened to news article giving you just information and you being capable of making up your own mind about it?
What happened to news being unbaised?
What happened to news being facts?

Now to get the correct picture I have to read 10 differnet sources to see the bits that are overlapping and assume well that must be the true part of this entire news facade.

Apr 17, 2009