वाही नहीं By Shobhna Srivastava 8:44 PM My poems No comments यही कही, कही नहीं तुमने मुझे रोक नही | हसी कुशी, कुशी नहीं भरी आखें छलकी नहीं | तुमारी यादे भूली नहीं पर सुनहरी यादे नयी कई | चलती रही, गुज़री नहीं ख़ुशी मुझे मिली वाही | Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to Facebook
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